अपना गाँव बदल रहा है
अपना गाँव हर बार नया सा लगता है. धीरे धीरे
काफी बदलाव दिखने लगा है. सड़के अब अच्छी हो गयी है. जल्द ही गाँव से होकर नेशनल
हाईवे निकलने वाला है. जिसका काम काफी तेज़ी से चल रहा है. मुझे याद है पहले जिला
मुख्यालय तक जाने में करीब 5-6 घंटे का समय लगता था जो आजकल कम होकर 2 घंटे हो गया
है और इस हाईवे के बन जाने के बाद सिर्फ १ घंटे का रह जायेगा. गाँव की प्रगति में
सड़क का योगदान सबसे ज्यादा होता है. सड़क अगर अच्छी हो तो हर तरह की सुविधा गाँव
में पहुँच सकती है.
बिजली और सड़क दो बुनियादी ज़रूरत है किसी भी
गाँव के लिए. हमारे गाँव में भी अब बिजली आ गयी है. इसीलिए अब गाँव अब आधुनिकता के
तरफ अग्रसर है. ये अच्छी बात है पर शायद एक चिंता भी है. आधुनिकता के इस दौर में
कहीं गाँव भी शहर ना बन जाये. कोई भी शहर किसी गाँव से अच्छा नहीं हो सकता. ये
सिर्फ एक दार्शनिक विचार नहीं पर एक सत्य है. अगर गहराई से विचार करे तो हम ये
महसूस करेंगे की शहर दूरियां पैदा करती है और गाँव करीब लता है. बरसो से शहर में
रहने वाले लोग भी सुकून के लिए गाँव अवश्य जाते हैं. मुन्नवर राणा साहब का एक शेर
है
“तुम्हारे
शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते
हमारे
गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं”
गाँव
में जो अपनापन पहले दिखता था वो आज कम ज़रूर हुआ है लेकिन फिर भी शहरों से बेहतर
है. ये भाव हमेशा बना रहे. लोग एक दुसरे से जुड़े रहें. संस्कार और संस्कृति बचाने की ज़िम्मेदारी सभी
के ऊपर है. कोशिश हर किसी को करनी पड़ेगी. गाँव की प्रगति ज़रूरी है. स्वास्थ्य
सेवाएँ बेहतर हो, स्कूल अच्छी शिक्षा प्रदान करे. लेकिन गाँव गाँव हे रहे, शहर न
बने.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें