नए वर्ष 2012 की शुरुआत ग़ालिब और दिल्ली से..
नए वर्ष 2012 की शुरुआत ग़ालिब और दिल्ली से..
वर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनायें।
देखते देखते एक महिना निकाल गया। सोच रहा था की ब्लॉग लिखना फिर से शुरू करना है तो आज मैंने शुरू कर ही दिया।
शुरुआत मिर्ज़ा ग़ालिब की चंद पंक्तियों से।
उनके देखे से जो आ जाती है मूंह पर रौनक
वो समझते हैं की बीमार का हाल अच्छा है
देखिए पाते हैं पौशाक बूतों से क्या फैज
इक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है..
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल को खुश रखने को 'ग़ालिब' ये खयाल अच्छा है
चलो दिल को बहलाने को ही सही खयाल तो अच्छा रहेगा। हम सब जिंदगी के जददों मे इतने उलझ जाते हैं की अपना मनचाहा काम भी पीछे छूट जाता है। लेकिन देर आए दुरुस्त आए।
कुछ बातें दिल्ली की। ब्लॉग की शुरुआत मैंने सी डबल्यू जी के दिनो मे की थी। अब लगता है जैसे की वो तो सालों पुरानी बात हो गयी। गेम खतम,चिंताएँ खतम। पर दिल्ली कुछ बदली बदली सी तो ज़रूर लगती है। वर्ल्ड क्लास सिटि न सही लेकिन दिल्ली वालों को काफी कुछ मिला तो ज़रूर। सड़कों के किनारे लगाए गए पौधों मे थोड़ी बहुत हरियाली तो रहती ही है। अब आप ये नहीं पूछिएगा की ये पौधे मैंने कहाँ देखे। नहीं तो मैं ज़रूर अक्षरधाम वाली सड़क का नाम ले लूँगा। वैसे ये तो आप मानेंगे न की मेट्रो रेल भी गेम की ही उपलब्धि है। चाहे आप उसमे सफर करे या न करे। दिल्ली को ट्रेफिक जाम से निजात दिलाने के लिए काफी flyover भी बनाए गए लेकिन अंतर सिर्फ इतना हुआ की पहले सड़क पर जाम लगता था अब flyover के ऊपर जाम लगता है। अब मैं और ज्यादा दिल्ली की चर्चा नहीं करूंगा क्यूँ की चाहे जैसी भी हो दिल्ली मेरी आपकी और हम सबकी जान है।
शुरुआत मैंने ग़ालिब और दिल्ली से इसीलिए किया की दोनों ही मेरे दिल के करीब हैं। अभी के लिए बस इतना ही। कोशिश ज़री रहेगी। इरादे नेक हो तो रास्ते मिल ही जाते हैं। कुछ और बातों के साथ फिर मिलेंगे चौक चौराहे पर। तबतक के लिए नमस्कार।
धन्यवाद।
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