हमारे अन्दर बसता अपना गाँव
हम सभी के अन्दर एक गाँव बसता है. अंतर सिर्फ इतना है की हम आज की भाग दौर में गाँव को महसूस करना भूल जाते हैं. पिछले साल जब कोरोना महामारी की वजह से हम सभी को आत्मावलोकन का मौका मिला तो ये एहसास खुलकर सामने आया. मेरा पूरा बचपन अपने गाँव में बीता है. आज भी मैं खुद को गाँव के ज्यादा करीब मानता हूँ. दरअसल ये सच हैं की जो आपके सबसे करीब होता है वो आपके अन्दर से हमेशा झांकता रहता है. आप कहीं भी पहुच जाएँ पर वो आपके साथ चलता है. गाँव से जुड़ी हुई कई खुबसूरत यादें हैं. बचपन के दिनों की वो खूबसूरती अब शायद सदियों पुरानी बात नज़र आती है पर सच यही है की वो आज भी हमारे चेहरों पर मुश्कान ले आती है. हम उस दौर में बड़े हुए जब इन्टरनेट नहीं था, मोबाइल फ़ोन नहीं था. यहाँ तक की हमारे गाँव में बिजली, सड़क और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं थी. पर हम खुश थे और हम सभी के पास समय था. हम प्रकृति से जुड़े हुए थे. पेड़ पौधे, खेत खलिहान, सभी ने हमारी परवरिस में अपना योगदान दिया था. आज के दौर में सबकुछ अलग है. हम शायद अकेले ऐसे generation हैं जिन्होंने सबसे ज्यादा परिवर्तन देखे हैं. इन परिवर्तनों ने हमें परिवर्तित कर दिया. हमारी दुनिया बड़ी थी पर आज एक छोटे से मोबाइल फ़ोन में सिमट कर रह गयी है. लेकिन फिर भी हम अपने अन्दर अपने गाँव को जिंदा रखे हुए हैं. गाँव की याद आखिर आई क्यूँ? वो इसीलिए की इस हफ्ते गाँव जा रहा हु. करीब एक सप्ताह रुकना होगा. इस दौरान कोशिश रहेगी की कलम का साथ बना रहे और कुछ बाते गाँव की ब्लॉग पर की जाये.

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